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भारशिवों (राजभरों) का परम संक्षिप्‍त इतिहास



21.भारशिवों (राजभरों) का परम संक्षिप् इतिहास

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लेखक आचार्य शिवप्रसादसिंह राजभर राजगुरू) वाकाटक नरेशों ने अपने ताम्रपत्रों ,शिलालेखों में भारशिवों ाक तजतना सुन्दर एवं परम संक्षिप् इतिहास लिखा हैइतिहास गवाह हैइतना परम संक्षिप् इतिहास आजतक किसी भी जाति का नहीं लिखा गया वाकाटक नरेशों ने अपने दान पत्र आदि में जिस प्रकार भारशिवों की जी खोलकर प्रशंसा की है उससे भारशिवों के उत्तम शासन ,सामाजिक ,आर्थिक ,राजनैतिक ,धार्मिक ,शैक्षिक आदि सभी बातों का खुलासा हो जाता है आइये आज मैं आपको अठारह सौ वर्ष पहले की दुर्लभ लिपि के दर्शन कराता हूं जिसे आप संभवत आप पहली बार देख रहे हैं---
वाकाटकों का एक ताम्रपत्र जिला दुर्ग मध्यप्रदेश में भूतपूर्व पानाबारस जमींदारी के मुख् ग्राम मोहल्ला में सन 1934 ईस्वी को प्राप् हुआ था प्रसिद्ध इतिहासकार श्री वासुदेव विष्णु मिराशी ने उस ताम्रपत्र की छाप अपने ग्रन् में दी है ताम्रपत्र पांच पंक्तियों में है यद्यपि ताम्रपत्र अपूर्ण है किन्तु भारशिवों की प्रशंसा की पंक्तियां इस ताम्रपत्र में सुरक्षित हैं ताम्रपत्र संस्क्रत भाषा देवनागरी लिपि में है ताम्रपत्र की मूल छाप एवं वाचन पांच पंक्तियों में इस प्रकार है -- 
वाचन प्रथम पंक्ति-पदमपुारत अग्निष्टोमाप्तोर्यामोक्त्थ् षोडश्यति सत्र वाजपेयब्रहस्पति सवसाद्यस् चतुरस्
वाचन द्वितीय पंक्तिमेघयाजिन विष्णु ब्रद्धसगोत्र सम्राजह वाकाटकानाममहाराज श्री प्रवरसेनस् सूनोह सूनोह
वाचन त्रतीय पंक्तिअत्यन् स्वामि महाभैरव भक्तस् अंसभार सन्निवेशित शिवलिंगोदवहन शिव सुपरि
वाचन चतुर्थ पंक्ति- तुष् समुत्पादित राजवंशानां पराक्क्रमाधिगत भागीरत्थ्यमल जल मूर्द्धाभिषिक्तानाम - वाचन पंचम पंक्तिदशाश्वमेधावभ्रत स्नातानाम्भारशिवानाम्ममहाराज श्री भवनाग दौहित्रस्
Photo: भारशिवों (राजभरों) का परम संक्षिप्‍त इतिहास 
(लेखक आचार्य शिवप्रसादसिंह राजभर राजगुरू)          वाकाटक नरेशों ने अपने ताम्रपत्रों ,शिलालेखों में भारशिवों ाक तजतना सुन्‍दर एवं परम संक्षिप्‍त इतिहास लिखा है –इतिहास गवाह है –इतना परम संक्षिप्‍त इतिहास आजतक किसी भी जाति का नहीं लिखा गया । वाकाटक नरेशों ने अपने दान पत्र आदि में जिस प्रकार भारशिवों की जी खोलकर प्रशंसा की है उससे भारशिवों के उत्‍तम शासन ,सामाजिक ,आर्थिक ,राजनैतिक ,धार्मिक ,शैक्षिक आदि सभी बातों का खुलासा हो जाता है । आइये आज मैं आपको अठारह सौ वर्ष पहले की दुर्लभ लिपि के दर्शन कराता हूं जिसे आप संभवत आप पहली बार देख रहे हैं---
          वाकाटकों का एक ताम्रपत्र  जिला दुर्ग मध्‍यप्रदेश  में भूतपूर्व पानाबारस जमींदारी के मुख्‍य ग्राम मोहल्‍ला में सन 1934 ईस्‍वी को प्राप्‍त हुआ था । प्रसिद्ध इतिहासकार  श्री वासुदेव विष्‍णु मिराशी ने उस ताम्रपत्र की छाप अपने ग्रन्‍थ में दी है । ताम्रपत्र पांच पंक्तियों में है । यद्यपि ताम्रपत्र अपूर्ण है किन्‍तु भारशिवों की प्रशंसा की पंक्तियां इस ताम्रपत्र में सुरक्षित हैं । ताम्रपत्र संस्‍क्रत भाषा देवनागरी लिपि  में है । ताम्रपत्र की मूल छाप एवं वाचन पांच पंक्तियों में इस प्रकार है -- 
वाचन  प्रथम पंक्ति-पदमपुारत अग्निष्‍टोमाप्‍तोर्यामोक्‍त्‍थ्‍य षोडश्‍यति सत्र वाजपेयब्रहस्‍पति सवसाद्यस्‍क चतुरस्‍व- 
वाचन द्वितीय पंक्ति—मेघयाजिन विष्‍णु ब्रद्धसगोत्र सम्राजह वाकाटकानाममहाराज श्री प्रवरसेनस्‍य सूनोह सूनोह - 
वाचन त्रतीय पंक्ति—अत्‍यन्‍त स्‍वामि महाभैरव भक्‍तस्‍य अंसभार सन्निवेशित शिवलिंगोदवहन शिव सुपरि- 
वाचन चतुर्थ पंक्ति- तुष्‍ट समुत्‍पादित राजवंशानां पराक्‍क्रमाधिगत भागीरत्‍थ्‍यमल जल मूर्द्धाभिषिक्‍तानाम - वाचन पंचम पंक्ति—दशाश्‍वमेधावभ्रत स्‍नातानाम्‍भारशिवानाम्‍ममहाराज श्री भवनाग दौहित्रस्‍य—
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BY- कैलाश नाथ राय भरतवंशी
FACEBOOK ADDRESS.-  kailashnathrai0023@gmail.com

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