-भारत का सच व भारत का झूठ क्या है और इस देश में कैसी राजनीति होनी चाहिए-
कहने में अच्छा लगता है कि हम जिस देश के वासी है उस देश में गंगा, यमुना, सरस्वती जैसी महान नदियाॅ बहती है और यह नदिया हमारे देश के कृषि में अपना सहयोग करती है तथा भारत की संस्कृत व सभ्यता विश्व में सबसे आगे है ।
यह भी सुनने में अच्छा लगता है कि विदेशी काशी आते है, मथुरा आते है, अयोध्या आते है और आकर जब कहता है वाह क्या देश है । काशी भगवान शंकर के लिये, मथुरा भगवान कृष्ण के लिये एवं अयोध्या भगवान राम के लिये पहिचान का विषय है। यही नही रामायण जैसे पुस्तक के मुख्य किरदार भगवान राम एवं हनुमान का जय जयकार तो करते है, किन्तु जिन महान् व्यक्तित्व ने पिता के बचनों का पालन करके 14 वर्ष वनवास के मार्ग पर चलकर पिता के प्रति भक्ति का नमूना पेश किया। पत्नी सीता के अपहृत हो जाने पर पत्नी को वापस लाने के लिये वीरता का परिचय दिया । क्या ऐसा संस्कार एवं गुण मानव अपने अन्दर देखने की कोशिश कर रहा है । बजरंगबली कहे या हनुमान कहे । इनकी माता अंजनी थी । अंजनी गौतम ऋषि की पुत्री थी । कश्यप कुल में उत्पन्न मरूत या पवन इनके पिता थे। उस समय की व्यवस्था में बजरंग बली का कार्य एवं वीरता अद्वितीय रहा । न्याय की स्थापना के लिये वीर कितना भी बड़ा था उससे लड़ने के लिये चाहे भगवान कृष्ण रहे, चाहे भगवान राम रहे, चाहे बजरंगबली राहे, चाहे भगवान शंकर रहे उसका सामना उसे अदना से आदमी समझकर किये और देश में न्याय एवं समरसता की बहार करने में सदैव अपने दायित्वों के निर्वहन में कसर नही छोड़े ।
कभी भारत के लोग भारत का सच क्या है और भारत की झूठ क्या है इसे छानकर जानने का प्रयास किये । हमारे ऋग्वेद के बारे में इतिहासकारों ने स्कूटनी करके स्पष्ट किया है कि वर्तमान ऋग्वेद के पुरूष शूक्त 10 वा मंडल में जो यह अंकित है कि ब्रहमा के मुॅह से ब्राहमण, बाॅह से क्षत्रिय एवं पेट से वैश्य तथा पैर से शूद्र की उत्पत्ति का उल्लेख है, वह पूरी तरह से गलत है। प्राचीन काल में भारत में धर्म सनातन था एवं यहाॅ पर कर्मकाण्डी को ब्राहमण एवं शेष देश रक्षा के काम में लगे थे जिन्हें क्षत्रिय कहा जाता था । इससे स्पष्ट है कि प्राचीन काल में कार्य के आधार पर दो ही वर्ग था जिसे क्षत्रिय एवं ब्राहमण कहा जाता था ।
भगवान कृष्ण ने भी गीता में अपने दिये उपदेश में यह कहा है कि चतुर्य वर्ण मया सृष्टम् । इस पर बहस छिड़ी और आम जनो ने भगवान कृष्ण से पूछा कि क्या आपने इन्सान को जाति में बांट दिया है तो भगवान कृष्ण ने मधुर भाव में कहा ना ना । इसका अर्थ यह नही है । गुण कर्म विभागशः । अर्थात गुण कर्म का विभान किया हूॅ।
भगवान कृष्ण भगवान ने गीता में शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय एवं ब्राहमण की परिभाषा भी परिभाषित किया है । बार-बार अध्ययन के बाद भी ज्ञान न होने पर ऐसे व्यक्ति की पहिचान शूद्र के रूप में होती है। शूद्र श्रेणी का व्यक्ति जब गुरूजनों की शरण में जाकर अध्यात्मक का ज्ञान प्राप्त करता है तो उसकी श्रेणी वैश्य की हो जाती है तथा यही वैश्य जब लोभ एवं विवेक पर नियंत्रण करते हुये प्रकृति के विनाशक को हराने की क्षमता प्राप्त करता है तो उसके अन्दर क्षय-त्रि-तत्व आ जाता है उसकी श्रेणी क्षत्रिय की हो जाती है। क्षत्रिय श्रेणी का व्यक्ति जब अनुशासन, अध्ययन, ज्ञान में निपुण हो जाता है तो उसकी श्रेणी ब्राहमण की हो जाती है। इसीलिये ऋग्वेद में अंकित है कि जन्मना जायते शूद्ररु, कर्मण्ेा ब्राहमणः ।
अब उक्त सच्चाई एवं यर्था के आलोक में आज भारत में देखे तो यहाॅ पर 6400 जातियाॅ है। यह क्यो बनाई गयी । 2000 वर्ष पूर्व शक भारत में अवैध घुसपैठ किये । उनके पीछे कुशाण घुस पैठ किये । शकों ने भारतीय संस्कृति सभ्यता को कमजोर करके अपने रंग रूप के आधार पर विभाजन की नीति करते हुये राज्य स्थापित कर लिये थे । जिनकी सत्ता 57 ई0पूर्व उज्जैन के राजा एवं राजा भर्तृहरि के भाई विक्रमादित्य ने समाप्त किया । इतिहासकारो ंने इन्हें शिवी बंश का बताया है। शिवी बंश पुरू बंश में आये । अतः यह आज के राजभरों के बंश के ही पूर्वज थे ।
इसी प्रकार कुशाणो ने भाई चारा में जहर घोलकर भारत की सत्ता पर काबिज कर लिये थे । जिन्हें कान्तितपुरी मिर्जापुर के भारशिव राजा श्री वीरसेन ने मथुरा एवं ग्वालियर के यादवों राजाओं की टीम बनाकर कुशाणो की सत्ता वर्ष 138 ई0 में समाप्त किया ।
इसके बाद गुप्त काल का वर्णन आता है। गुप्त कौन थे । इतिहासों में एक पहेली की तरह है, लेकिन सच यह है कि भरतबंश के मुख्यालय कौशाम्बी से सुन्दरवर्मा नाम का एक राजा मगध से भारत के राज की व्यवस्था संचालित करता था। उसे काफी समय तक पुत्र नही हुआ था तो उसने एक जाट बंश के चन्डसेन को गोद ले लिया था। भाग्यवश कुछ दिन बाद सुन्दरवर्मा की रानी से एक पुत्र कल्याण वर्मा पैदा हआ । कल्याण वर्मा के पैदा होने पर चण्डसेन जलन रखने लगा । चण्डसेन की नीयत पर शक होने पर सुन्दरवर्मा ने कल्याण वर्मा को पम्पापुर वर्तमान कान्तितपुरी भेज दिया । कान्तितपुरी राजभर राजाओं का मुख्यालय बन गया था। उधर चण्डसेन ने सुन्दर वर्मा की हत्या करके मगध का शासन अपने हाथ में ले लिया था। कल्याण वर्मा युवा होने पर निषाद आदि जातियों को मिलाकर सेना की टीम बनाते हुये चण्डसेन को सत्ता से हटाकर स्वयं सत्ता स्थापित किया और अपना नाम श्रीगुप्त रखा। गुप्त काल में चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने भी शकों को साग भाजी की तरह भारत की सत्ता से अलग किया। स्कन्दगुप्त ने हूणों को साग भाजी की तरह सत्ता से अलग किया ।
शक कुशाण हूण भी गुप्त की तरह गुप्त बनकर शासन चलाने का प्रयास किये, लेकिन इनके अन्दर लूट की परम्परा एवं सच छिपाकर राज करने की कला ने देश को दुर्दशा में डाल दिया था। इस पर हरियाणा के थानेश्वर निवासी जाट राजा हर्षबद्धन ने जनता की मांग पर शासन की व्यवस्था का संचालन कन्नौज से प्रारम्भ किया। जाट राजा हर्षबर्द्धन का कार्यकाल 606 ई0 से 647 ई0 तक थी। पुनः भारत में अस्थिरता की स्थिति आई ।
शक कुशाण हूण सूर्य से शुद्ध होकर सूर्यापारी एवं अग्नि से शुद्ध होकर अग्निकुण्ड के राजपूत की व्यवस्था स्थापित करने लगे । आज सूर्यापारी ही सरजूपारी ब्राहमण है तथा प्रतिहार, परमार, सोलंकी, चव्हाण राजपूत अग्निकुण्ड के राजपूत है । इनकी इस व्यवस्था से उत्तर भारत में राजभरों के पूर्वजों ने भी चंदेल, ग्रहवार, भदौरिया, बुंदेला, बैसवाड़ा जैसे नामों से राजूपत की व्यवस्था स्थापित किया तथा दक्षिण में यादवों ने भोसले,गायकवाड़, सिन्धिया, होल्कर आदि नामो से राजपूत की व्यवस्था स्थापित किये एवं पूर्वी उत्तर भारत में यादवों ने कल्चुरी एवं हैहय रूप में राजपूत की व्यवस्था स्थापित की । जाटों ने शाही नाम से राजपूत की व्यवस्था स्थापित की । उत्तर में कोईरियों ने रघुबंशी, कुशवाहा, शाक्य जैसे नामों से राजपूत व्यवस्था स्थापित की । इसी प्रकार से असली क्षत्रिय जो आज पिछड़ी जाति में है उनके पूर्वजों ने अलग अलग नाम से राजपूतों की व्यवस्था स्थापित की ।
संक्षेप में निष्कर्ष निकालना आवश्यक है कि इसी तरह लड़ाईयाॅ विदेशी आंक्रंताओ ंसे होती रही। मुगलों ने बड़ी चालाकी से विदेश से आकर भारत में हिन्दू बने सरजूपारी ब्राहमण, अग्नि कुण्ड के ठाकुरों को विशेष महत्व दिया और उन्हें अपनी ओर मिलाकर शासन व्यवस्था प्रारम्भ किया । इसी विदेशी ब्राहमणों को जमीदार बनाकर उन्हें भूमिहार बनाया और राज सत्ता तक इन्हें पहुॅचाया । उधर देशी राजाओं के अधीन तालुकेदार के रूप में ठाकुर के रूप में स्थापित लोगों को भी मुगलों ने अपनी ओर किया और उनसे एवं इन भूमिहार के माध्यम से असली क्षत्रियों का विनाश करते हुये संपत्ति को लुटने एवं लुटवाने का खेल होता रहा । अंग्रेजो के काल में भी अव्यवस्था का दौर चलता रहा । नतीजा यह रहा कि असली क्षत्रियों की संतानों को सुविधा विहीन करके मजदूर की जिन्दगी के लिये विवश कर दिया गया और 1911 में अंग्रेजो एवं मुगलो ने बा्रहमणों की आख्या के आधार पर देश में 6400 जातियों का उदय कर दिया एवं कर्म नही बल्कि जन्म के आधार पर मनुष्य की व्यवस्था स्थापित करा दिया।
अब इस देश को कौन अच्छा देश बना सकता है। इसका एक ही सूत्र है कि जो निजी हित छोड़कर राष्टहित का काम करेगा वही इस देश को प्राचीन भारत जैसा संस्कारी, सनातनी एवं विकसित देश बना सकता है ।
क्या भारत के सवर्ण जिसमें देशी विदेशी दोनो वर्ग शामिल है जो विदेशी आक्रमण के समय देश को लुटवाये एवं लूटे एवं गलत रास्ते के आधार पर देश की जमीन जो राजा प्रजा सबकी थी जिसे इन लोगो ने अपने नाम करा लिया है एवं जो पिछड़ो एवं अनुसूचित जाति को पढ़ने से रोकने, मनोबल को रोकने एवं मजदूर के लिये विवश करने का काम करते है उनसे ऐसी उम्मीद की जा सकती है तो यह संभव ही नही । सवर्ण वर्ग अपनी आबादी का 95 प्रतिशत नौकरियो में है। पिछड़ा वर्ग अपनी आबादी का मात्र 8 प्रतिशत नौकरियो में है। यही हाल अनुसूचित जाति एवं जन जाति का भी है।
अब तो इतना कहना है कि बड़ी जाति एक झूठ का नाम है छोटी जाति उस सच का नाम है जिनके पूर्वज देश बचाने के लिये गद्दारी नही किये बल्कि विदेशी आक्रांताओं से लड़ते रहे । भीतरघात के कारण ही पराजित हुये अथवा मार दिये गये और जिनके बच्चे दीनहीन का जीवन जी रहे है तथा पिछड़ों एवं अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति में है।
भारत में अगलो पिछड़ो से सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला बनाकर राजनीति करने की आवश्यकता नही है। बल्कि पिछड़ो एवं अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जन जाति को देश को अच्छा बनाने एवं यहाॅ पर सनातन धर्म लाने, भाई चारा लाने, खुशहाली लाने के लिये राजनीति की अच्छी सोच लाने की जरूरत है।
आगामी लोकसभा चुनाव के लिये सुश्री मायावती जी एवं समाजवादी पार्टी के राष्ट्ीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जी एवं लोकदल के मा0 श्री जयंत चैधरी जी गठबंधन अवश्य किये है, लेकिन उपर अंकित बातो ंपर दृष्टि की जाये तो स्पष्ट है कि इन्हें पिछड़ों एवं दलितों के बीच से ही प्रत्याशी लाकर देश बदलने वाली तस्वीर प्रस्तुत करना चाहिए । सोशल इंजीनियरिंग करने पर यहाॅ का पिछड़ा व दलित एक धोखा मानेगा और वह अपने साथ इनसे न्याय की उम्मीद इसलिये नही करेगा कि जब सवर्ण इन नेताओं के बीच रहते है तो वह गेमबाज होने के कारण कमीशन का पाठ पढ़ाकर चाहे ठेकेदारी हो चाहे नौकरी में भागीदारी हो हर जगह अपनी जगह बनाकर नेताओं को उनके समाज के प्रति घृणा बढ़ाने वाली राय देते रहते है। अन्ततः इन नेताओ ंकी जातियों के लोग अपने को ठगा महसूस करने लगते है।
राजभर समाज के लोगों को समझना चाहिए कि जब उनके पूर्वज महान थे तो इस देश के लिये कुछ उपाय करके पुनः सत्ता स्थापित करने वाला कदम उठा लेना चाहिए।
कहने में अच्छा लगता है कि हम जिस देश के वासी है उस देश में गंगा, यमुना, सरस्वती जैसी महान नदियाॅ बहती है और यह नदिया हमारे देश के कृषि में अपना सहयोग करती है तथा भारत की संस्कृत व सभ्यता विश्व में सबसे आगे है ।
यह भी सुनने में अच्छा लगता है कि विदेशी काशी आते है, मथुरा आते है, अयोध्या आते है और आकर जब कहता है वाह क्या देश है । काशी भगवान शंकर के लिये, मथुरा भगवान कृष्ण के लिये एवं अयोध्या भगवान राम के लिये पहिचान का विषय है। यही नही रामायण जैसे पुस्तक के मुख्य किरदार भगवान राम एवं हनुमान का जय जयकार तो करते है, किन्तु जिन महान् व्यक्तित्व ने पिता के बचनों का पालन करके 14 वर्ष वनवास के मार्ग पर चलकर पिता के प्रति भक्ति का नमूना पेश किया। पत्नी सीता के अपहृत हो जाने पर पत्नी को वापस लाने के लिये वीरता का परिचय दिया । क्या ऐसा संस्कार एवं गुण मानव अपने अन्दर देखने की कोशिश कर रहा है । बजरंगबली कहे या हनुमान कहे । इनकी माता अंजनी थी । अंजनी गौतम ऋषि की पुत्री थी । कश्यप कुल में उत्पन्न मरूत या पवन इनके पिता थे। उस समय की व्यवस्था में बजरंग बली का कार्य एवं वीरता अद्वितीय रहा । न्याय की स्थापना के लिये वीर कितना भी बड़ा था उससे लड़ने के लिये चाहे भगवान कृष्ण रहे, चाहे भगवान राम रहे, चाहे बजरंगबली राहे, चाहे भगवान शंकर रहे उसका सामना उसे अदना से आदमी समझकर किये और देश में न्याय एवं समरसता की बहार करने में सदैव अपने दायित्वों के निर्वहन में कसर नही छोड़े ।
कभी भारत के लोग भारत का सच क्या है और भारत की झूठ क्या है इसे छानकर जानने का प्रयास किये । हमारे ऋग्वेद के बारे में इतिहासकारों ने स्कूटनी करके स्पष्ट किया है कि वर्तमान ऋग्वेद के पुरूष शूक्त 10 वा मंडल में जो यह अंकित है कि ब्रहमा के मुॅह से ब्राहमण, बाॅह से क्षत्रिय एवं पेट से वैश्य तथा पैर से शूद्र की उत्पत्ति का उल्लेख है, वह पूरी तरह से गलत है। प्राचीन काल में भारत में धर्म सनातन था एवं यहाॅ पर कर्मकाण्डी को ब्राहमण एवं शेष देश रक्षा के काम में लगे थे जिन्हें क्षत्रिय कहा जाता था । इससे स्पष्ट है कि प्राचीन काल में कार्य के आधार पर दो ही वर्ग था जिसे क्षत्रिय एवं ब्राहमण कहा जाता था ।
भगवान कृष्ण ने भी गीता में अपने दिये उपदेश में यह कहा है कि चतुर्य वर्ण मया सृष्टम् । इस पर बहस छिड़ी और आम जनो ने भगवान कृष्ण से पूछा कि क्या आपने इन्सान को जाति में बांट दिया है तो भगवान कृष्ण ने मधुर भाव में कहा ना ना । इसका अर्थ यह नही है । गुण कर्म विभागशः । अर्थात गुण कर्म का विभान किया हूॅ।
भगवान कृष्ण भगवान ने गीता में शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय एवं ब्राहमण की परिभाषा भी परिभाषित किया है । बार-बार अध्ययन के बाद भी ज्ञान न होने पर ऐसे व्यक्ति की पहिचान शूद्र के रूप में होती है। शूद्र श्रेणी का व्यक्ति जब गुरूजनों की शरण में जाकर अध्यात्मक का ज्ञान प्राप्त करता है तो उसकी श्रेणी वैश्य की हो जाती है तथा यही वैश्य जब लोभ एवं विवेक पर नियंत्रण करते हुये प्रकृति के विनाशक को हराने की क्षमता प्राप्त करता है तो उसके अन्दर क्षय-त्रि-तत्व आ जाता है उसकी श्रेणी क्षत्रिय की हो जाती है। क्षत्रिय श्रेणी का व्यक्ति जब अनुशासन, अध्ययन, ज्ञान में निपुण हो जाता है तो उसकी श्रेणी ब्राहमण की हो जाती है। इसीलिये ऋग्वेद में अंकित है कि जन्मना जायते शूद्ररु, कर्मण्ेा ब्राहमणः ।
अब उक्त सच्चाई एवं यर्था के आलोक में आज भारत में देखे तो यहाॅ पर 6400 जातियाॅ है। यह क्यो बनाई गयी । 2000 वर्ष पूर्व शक भारत में अवैध घुसपैठ किये । उनके पीछे कुशाण घुस पैठ किये । शकों ने भारतीय संस्कृति सभ्यता को कमजोर करके अपने रंग रूप के आधार पर विभाजन की नीति करते हुये राज्य स्थापित कर लिये थे । जिनकी सत्ता 57 ई0पूर्व उज्जैन के राजा एवं राजा भर्तृहरि के भाई विक्रमादित्य ने समाप्त किया । इतिहासकारो ंने इन्हें शिवी बंश का बताया है। शिवी बंश पुरू बंश में आये । अतः यह आज के राजभरों के बंश के ही पूर्वज थे ।
इसी प्रकार कुशाणो ने भाई चारा में जहर घोलकर भारत की सत्ता पर काबिज कर लिये थे । जिन्हें कान्तितपुरी मिर्जापुर के भारशिव राजा श्री वीरसेन ने मथुरा एवं ग्वालियर के यादवों राजाओं की टीम बनाकर कुशाणो की सत्ता वर्ष 138 ई0 में समाप्त किया ।
इसके बाद गुप्त काल का वर्णन आता है। गुप्त कौन थे । इतिहासों में एक पहेली की तरह है, लेकिन सच यह है कि भरतबंश के मुख्यालय कौशाम्बी से सुन्दरवर्मा नाम का एक राजा मगध से भारत के राज की व्यवस्था संचालित करता था। उसे काफी समय तक पुत्र नही हुआ था तो उसने एक जाट बंश के चन्डसेन को गोद ले लिया था। भाग्यवश कुछ दिन बाद सुन्दरवर्मा की रानी से एक पुत्र कल्याण वर्मा पैदा हआ । कल्याण वर्मा के पैदा होने पर चण्डसेन जलन रखने लगा । चण्डसेन की नीयत पर शक होने पर सुन्दरवर्मा ने कल्याण वर्मा को पम्पापुर वर्तमान कान्तितपुरी भेज दिया । कान्तितपुरी राजभर राजाओं का मुख्यालय बन गया था। उधर चण्डसेन ने सुन्दर वर्मा की हत्या करके मगध का शासन अपने हाथ में ले लिया था। कल्याण वर्मा युवा होने पर निषाद आदि जातियों को मिलाकर सेना की टीम बनाते हुये चण्डसेन को सत्ता से हटाकर स्वयं सत्ता स्थापित किया और अपना नाम श्रीगुप्त रखा। गुप्त काल में चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने भी शकों को साग भाजी की तरह भारत की सत्ता से अलग किया। स्कन्दगुप्त ने हूणों को साग भाजी की तरह सत्ता से अलग किया ।
शक कुशाण हूण भी गुप्त की तरह गुप्त बनकर शासन चलाने का प्रयास किये, लेकिन इनके अन्दर लूट की परम्परा एवं सच छिपाकर राज करने की कला ने देश को दुर्दशा में डाल दिया था। इस पर हरियाणा के थानेश्वर निवासी जाट राजा हर्षबद्धन ने जनता की मांग पर शासन की व्यवस्था का संचालन कन्नौज से प्रारम्भ किया। जाट राजा हर्षबर्द्धन का कार्यकाल 606 ई0 से 647 ई0 तक थी। पुनः भारत में अस्थिरता की स्थिति आई ।
शक कुशाण हूण सूर्य से शुद्ध होकर सूर्यापारी एवं अग्नि से शुद्ध होकर अग्निकुण्ड के राजपूत की व्यवस्था स्थापित करने लगे । आज सूर्यापारी ही सरजूपारी ब्राहमण है तथा प्रतिहार, परमार, सोलंकी, चव्हाण राजपूत अग्निकुण्ड के राजपूत है । इनकी इस व्यवस्था से उत्तर भारत में राजभरों के पूर्वजों ने भी चंदेल, ग्रहवार, भदौरिया, बुंदेला, बैसवाड़ा जैसे नामों से राजूपत की व्यवस्था स्थापित किया तथा दक्षिण में यादवों ने भोसले,गायकवाड़, सिन्धिया, होल्कर आदि नामो से राजपूत की व्यवस्था स्थापित किये एवं पूर्वी उत्तर भारत में यादवों ने कल्चुरी एवं हैहय रूप में राजपूत की व्यवस्था स्थापित की । जाटों ने शाही नाम से राजपूत की व्यवस्था स्थापित की । उत्तर में कोईरियों ने रघुबंशी, कुशवाहा, शाक्य जैसे नामों से राजपूत व्यवस्था स्थापित की । इसी प्रकार से असली क्षत्रिय जो आज पिछड़ी जाति में है उनके पूर्वजों ने अलग अलग नाम से राजपूतों की व्यवस्था स्थापित की ।
संक्षेप में निष्कर्ष निकालना आवश्यक है कि इसी तरह लड़ाईयाॅ विदेशी आंक्रंताओ ंसे होती रही। मुगलों ने बड़ी चालाकी से विदेश से आकर भारत में हिन्दू बने सरजूपारी ब्राहमण, अग्नि कुण्ड के ठाकुरों को विशेष महत्व दिया और उन्हें अपनी ओर मिलाकर शासन व्यवस्था प्रारम्भ किया । इसी विदेशी ब्राहमणों को जमीदार बनाकर उन्हें भूमिहार बनाया और राज सत्ता तक इन्हें पहुॅचाया । उधर देशी राजाओं के अधीन तालुकेदार के रूप में ठाकुर के रूप में स्थापित लोगों को भी मुगलों ने अपनी ओर किया और उनसे एवं इन भूमिहार के माध्यम से असली क्षत्रियों का विनाश करते हुये संपत्ति को लुटने एवं लुटवाने का खेल होता रहा । अंग्रेजो के काल में भी अव्यवस्था का दौर चलता रहा । नतीजा यह रहा कि असली क्षत्रियों की संतानों को सुविधा विहीन करके मजदूर की जिन्दगी के लिये विवश कर दिया गया और 1911 में अंग्रेजो एवं मुगलो ने बा्रहमणों की आख्या के आधार पर देश में 6400 जातियों का उदय कर दिया एवं कर्म नही बल्कि जन्म के आधार पर मनुष्य की व्यवस्था स्थापित करा दिया।
अब इस देश को कौन अच्छा देश बना सकता है। इसका एक ही सूत्र है कि जो निजी हित छोड़कर राष्टहित का काम करेगा वही इस देश को प्राचीन भारत जैसा संस्कारी, सनातनी एवं विकसित देश बना सकता है ।
क्या भारत के सवर्ण जिसमें देशी विदेशी दोनो वर्ग शामिल है जो विदेशी आक्रमण के समय देश को लुटवाये एवं लूटे एवं गलत रास्ते के आधार पर देश की जमीन जो राजा प्रजा सबकी थी जिसे इन लोगो ने अपने नाम करा लिया है एवं जो पिछड़ो एवं अनुसूचित जाति को पढ़ने से रोकने, मनोबल को रोकने एवं मजदूर के लिये विवश करने का काम करते है उनसे ऐसी उम्मीद की जा सकती है तो यह संभव ही नही । सवर्ण वर्ग अपनी आबादी का 95 प्रतिशत नौकरियो में है। पिछड़ा वर्ग अपनी आबादी का मात्र 8 प्रतिशत नौकरियो में है। यही हाल अनुसूचित जाति एवं जन जाति का भी है।
अब तो इतना कहना है कि बड़ी जाति एक झूठ का नाम है छोटी जाति उस सच का नाम है जिनके पूर्वज देश बचाने के लिये गद्दारी नही किये बल्कि विदेशी आक्रांताओं से लड़ते रहे । भीतरघात के कारण ही पराजित हुये अथवा मार दिये गये और जिनके बच्चे दीनहीन का जीवन जी रहे है तथा पिछड़ों एवं अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति में है।
भारत में अगलो पिछड़ो से सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला बनाकर राजनीति करने की आवश्यकता नही है। बल्कि पिछड़ो एवं अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जन जाति को देश को अच्छा बनाने एवं यहाॅ पर सनातन धर्म लाने, भाई चारा लाने, खुशहाली लाने के लिये राजनीति की अच्छी सोच लाने की जरूरत है।
आगामी लोकसभा चुनाव के लिये सुश्री मायावती जी एवं समाजवादी पार्टी के राष्ट्ीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जी एवं लोकदल के मा0 श्री जयंत चैधरी जी गठबंधन अवश्य किये है, लेकिन उपर अंकित बातो ंपर दृष्टि की जाये तो स्पष्ट है कि इन्हें पिछड़ों एवं दलितों के बीच से ही प्रत्याशी लाकर देश बदलने वाली तस्वीर प्रस्तुत करना चाहिए । सोशल इंजीनियरिंग करने पर यहाॅ का पिछड़ा व दलित एक धोखा मानेगा और वह अपने साथ इनसे न्याय की उम्मीद इसलिये नही करेगा कि जब सवर्ण इन नेताओं के बीच रहते है तो वह गेमबाज होने के कारण कमीशन का पाठ पढ़ाकर चाहे ठेकेदारी हो चाहे नौकरी में भागीदारी हो हर जगह अपनी जगह बनाकर नेताओं को उनके समाज के प्रति घृणा बढ़ाने वाली राय देते रहते है। अन्ततः इन नेताओ ंकी जातियों के लोग अपने को ठगा महसूस करने लगते है।
राजभर समाज के लोगों को समझना चाहिए कि जब उनके पूर्वज महान थे तो इस देश के लिये कुछ उपाय करके पुनः सत्ता स्थापित करने वाला कदम उठा लेना चाहिए।
2 टिप्पणियाँ
Aaj kal ke neta log Rajbharo Ko sc. Caste me lane ki kosis kar rahe kuchh dark karo logo Ko bevkuph mat banao /please.Rajbhar Wikipedia me bhi Bhari Ko malah VA Nabil bataya ja rah ha isko thik Karmakar Akshtriya Rajpoot karwao ji
जवाब देंहटाएं1911 में अंग्रेजो एवं मुगलो ने बा्रहमणों की आख्या के आधार पर देश में 6400 जातियों का उदय कर दिया एवं कर्म नही बल्कि जन्म के आधार पर मनुष्य की व्यवस्था स्थापित करा दिया।
जवाब देंहटाएं1911 mein kaun saa mughal shaashan thaa Bharatvarsh mein.Kripayaa spashta Karen.