16.भर राजाओं की संपत्ति घोषित हो डौंडियाखेड़ा किला
Posted On October 26th, 2013 By नया इंडिया टीम
लखनऊ। संत शोभन सरकार के सपने के आधार पर डौंडियाखेड़ा में राजा राव रामबख्श सिंह के किले की खुदाई का मामला इन दिनों समाज व मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है। गौरतलब है कि बाबा ने किले में जमीन के नीचे एक हजार टन सोना दबे होने का सपना देखा था। जिसके आधार पर उप्र के उन्नाव जिले में कथित खजाने की खोज में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के दल कड़ी सुरक्षा के बीच डौंडियाखेड़ा में खुदाई का काम कर रहा है। छह दिनों में अब तक कुल 2.17 मीटर खुदाई की जा चुकी है। वहीं इस खजाने को लेकर विभिन्न राजनैतिक दलों, संगठनों और हिन्दू समाज की कई जातियों में राजनीति शुरू हो गयी है। सभी इस किले को पुरखों की धरोहर बताकर अपना अपना अधिकार जताने की कोशिश में लगे हैं।
पिछले एक सप्ताह से सुर्खियों में आये डौंडियाखेड़ा के संदर्भ में बार-बार यह प्रचारित किया जा रहा है कि यह किला राजा राव रामबख्श सिंह का है जिन्होंन इस किले का निर्माण करवाया था लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। प्राचीन पुरावशेष शोध एवं संरक्षण समिति के प्रदेश प्रभारी व पुरातत्वविद भीमसेन भारशिव और भर जाति के लोगों ने इस किले पर अपना अधिकार जताया है। इस संबंध में समिति के प्रदेश प्रभारी भीमसेन भारशिव का कहना है कि प्रसिद्ध इतिहासकार डा. केपी जायसवाल के अनुसार भारत में कुषाण साम्राज्य का अंत नाग भारशिव महाराज वीरसेन ‘भर’ ने किया। यह घटना 170 ई. सन की है। कुषाणों के अंतिम राजा वासुदेव को परास्त कर वीरसेन ने काशी के दशाश्वमेध घाट पर 10 बार यज्ञ किया जिसकी राजधानी मथुरा थी, तभी से यह सम्पूर्ण उत्तर-भारत भर राजाओं के अधीन हो गया। ‘भर’ जाति के लोगों का कहना है कि उन्नाव जिला प्राचीन काल में कौशल (अवध) सूबे का एक भाग था। राजपूतों के उदय से पूर्व इस क्षेत्र में भर, पासी, लोध, अहीर, ठठेर, धोबी और कुर्मी शासन करते थे। उनका कहना है कि उन्नाव जिले की आदिम निवासी और शासक ‘भर’ रहे हैं। इस क्षेत्र के अनेकों किलों, पोखरों, तालाबों, का निर्माण ‘भरों’ के जरिए किया गया है। ‘भरों’ के किलों को ‘भरडीह’ के नाम से जाना जाता है। उन्नाव जिले के देवराडीह, शीतलाडीह, महादेवा, फुलवारी, बांगरमऊ, रामकोट, मवई गांव की कोट, पत्तन गांव की कोट के अलावा अनेकों गढि़यों का निर्माण भी ‘भरों’ ने करवाया था।
‘भर’ जाति के लोगों का दावा है कि डौंडियाखेड़ा किला के साथ-साथ अन्य किलों का निर्माण ‘भर’ राजा पन्ना ने लगभग 2300 वर्ष पहले करवाया था। उन्होंने कहा कि कुषाण काल के 12 सोने के सिक्के इसी डौंडियाखेड़ा क्षेत्र से प्राप्त हुए जैसा कि सर्वविदित है कि कुषाणों के बाद ‘भरों’ ने सोने के सिक्के भी चलवाये थे। इस तरह डौंडियाखेड़ा का इतिहास लगभग 2300 वर्ष पुराना प्रतीत होता है। ‘भरों’ का कहना है कि ‘भर’ शिव भक्त रहे हैं जिसके कारण इन्होंने डौंडियाखेड़ा किले पर शिव मंदिर का निर्माण करवाया था। उन्नाव किले का नाम उन्नवतपुर था जो बदलकर अब उन्नाव हो गया है। 150 ई. से लेकर 14वीं सदी तक ‘भरों’ का आधिपत्य डौंडियाखेड़ा में कायम था।
‘भर’ जाति के लोगों और प्राचीन पुरावशेष शोध एवं संरक्षण समिति ने यह मांग की है कि भारतीय पुरातत्व विभाग इतिहास को सही ढंग से देश के सामने प्रस्तुत करे। साथ ही समिति प्रदेश संयोजक राधेश्याम, सचिव केशरीनन्दन राजभर, प्रदेश उपाध्यक्ष सर्वेशकुमार व अशोक कुमार राजभर, राजधारी राजभर, सुशील राजभर आदि सदस्यों व ‘भर’ जाति के लोगों ने किले के उत्खनन से प्राप्त सभी पुरा सम्पदा को किले पर ही संग्रहालय बनाकर सुरक्षित रखने, किले के पुनरोद्धार व पर्यटन के रूप में विकसित करने, किले का सीमांकन कर उसकी सुरक्षा दीवार बनाने, किले पर ‘भर राजा पन्ना का किला है’ बोर्ड लगाने, किले के वास्तविक मालिक ‘भर’ हैं, अतः यह किला भरों को सौंपे जाने और किले का उत्खनन करते समय समिति के एक प्रतिनिधि को इसमें शामिल करने सहित अन्य मांगे प्रदेश सरकार के समक्ष रखी हैं।
पिछले एक सप्ताह से सुर्खियों में आये डौंडियाखेड़ा के संदर्भ में बार-बार यह प्रचारित किया जा रहा है कि यह किला राजा राव रामबख्श सिंह का है जिन्होंन इस किले का निर्माण करवाया था लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। प्राचीन पुरावशेष शोध एवं संरक्षण समिति के प्रदेश प्रभारी व पुरातत्वविद भीमसेन भारशिव और भर जाति के लोगों ने इस किले पर अपना अधिकार जताया है। इस संबंध में समिति के प्रदेश प्रभारी भीमसेन भारशिव का कहना है कि प्रसिद्ध इतिहासकार डा. केपी जायसवाल के अनुसार भारत में कुषाण साम्राज्य का अंत नाग भारशिव महाराज वीरसेन ‘भर’ ने किया। यह घटना 170 ई. सन की है। कुषाणों के अंतिम राजा वासुदेव को परास्त कर वीरसेन ने काशी के दशाश्वमेध घाट पर 10 बार यज्ञ किया जिसकी राजधानी मथुरा थी, तभी से यह सम्पूर्ण उत्तर-भारत भर राजाओं के अधीन हो गया। ‘भर’ जाति के लोगों का कहना है कि उन्नाव जिला प्राचीन काल में कौशल (अवध) सूबे का एक भाग था। राजपूतों के उदय से पूर्व इस क्षेत्र में भर, पासी, लोध, अहीर, ठठेर, धोबी और कुर्मी शासन करते थे। उनका कहना है कि उन्नाव जिले की आदिम निवासी और शासक ‘भर’ रहे हैं। इस क्षेत्र के अनेकों किलों, पोखरों, तालाबों, का निर्माण ‘भरों’ के जरिए किया गया है। ‘भरों’ के किलों को ‘भरडीह’ के नाम से जाना जाता है। उन्नाव जिले के देवराडीह, शीतलाडीह, महादेवा, फुलवारी, बांगरमऊ, रामकोट, मवई गांव की कोट, पत्तन गांव की कोट के अलावा अनेकों गढि़यों का निर्माण भी ‘भरों’ ने करवाया था।
‘भर’ जाति के लोगों का दावा है कि डौंडियाखेड़ा किला के साथ-साथ अन्य किलों का निर्माण ‘भर’ राजा पन्ना ने लगभग 2300 वर्ष पहले करवाया था। उन्होंने कहा कि कुषाण काल के 12 सोने के सिक्के इसी डौंडियाखेड़ा क्षेत्र से प्राप्त हुए जैसा कि सर्वविदित है कि कुषाणों के बाद ‘भरों’ ने सोने के सिक्के भी चलवाये थे। इस तरह डौंडियाखेड़ा का इतिहास लगभग 2300 वर्ष पुराना प्रतीत होता है। ‘भरों’ का कहना है कि ‘भर’ शिव भक्त रहे हैं जिसके कारण इन्होंने डौंडियाखेड़ा किले पर शिव मंदिर का निर्माण करवाया था। उन्नाव किले का नाम उन्नवतपुर था जो बदलकर अब उन्नाव हो गया है। 150 ई. से लेकर 14वीं सदी तक ‘भरों’ का आधिपत्य डौंडियाखेड़ा में कायम था।
‘भर’ जाति के लोगों और प्राचीन पुरावशेष शोध एवं संरक्षण समिति ने यह मांग की है कि भारतीय पुरातत्व विभाग इतिहास को सही ढंग से देश के सामने प्रस्तुत करे। साथ ही समिति प्रदेश संयोजक राधेश्याम, सचिव केशरीनन्दन राजभर, प्रदेश उपाध्यक्ष सर्वेशकुमार व अशोक कुमार राजभर, राजधारी राजभर, सुशील राजभर आदि सदस्यों व ‘भर’ जाति के लोगों ने किले के उत्खनन से प्राप्त सभी पुरा सम्पदा को किले पर ही संग्रहालय बनाकर सुरक्षित रखने, किले के पुनरोद्धार व पर्यटन के रूप में विकसित करने, किले का सीमांकन कर उसकी सुरक्षा दीवार बनाने, किले पर ‘भर राजा पन्ना का किला है’ बोर्ड लगाने, किले के वास्तविक मालिक ‘भर’ हैं, अतः यह किला भरों को सौंपे जाने और किले का उत्खनन करते समय समिति के एक प्रतिनिधि को इसमें शामिल करने सहित अन्य मांगे प्रदेश सरकार के समक्ष रखी हैं।
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BY- कैलाश नाथ राय भरतवंशी
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