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जनेऊ धारण करने की परंपरा क्यों, ये हैं इसके कारण


हिंदू धर्म में 16 संस्कारों को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है, इन्हीं संस्कारों में से एक है जनेऊ संस्कार। क्या आप जानते हैं कि इस परंपरा का सिर्फ धार्मिक लिहाज से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक लिहाज से भी बहुत महत्व है। साधारण भाषा में जनेऊ एक ऐसी परंपरा है, जिसके बाद ही कोई भी पुरुष पारंपरिक तौर से पूजा या धार्मिक कामों में भाग ले सकता है। प्राचीन काल में जनेऊ पहनने के बाद ही बालक को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिलता था।
जनेऊ को उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र भी कहते हैं। वेदों में भी जनेऊ धारण करने की हिदायत दी गई है। इसे उपनयन संस्कार कहते हैं। 'उपनयन' का अर्थ है, पास या निकट ले जाना। यहां पास ले जाने से तात्पर्य ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाने से है।

धार्मिक कारण

जनेऊ क्या है- आपने देखा होगा कि बहुत से लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं। इस धागे को जनेऊ कहते हैं। जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। इसे संस्कृत भाषा में 'यज्ञोपवीत' कहा जाता है। यह सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर और दाईं भुजा के नीचे पहनता है यानी इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे।
तीन सूत्र क्यों- जनेऊ में मुख्‍यरूप से तीन सूत्र होते हैं हर सूत्र में तीन धागे होते हैं। पहला धागा इसमें उपस्थित तीन सूत्र त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। दूसरा धागा देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण काे दर्शाता हैं और तीसरा यह सत्व, रज और तम का रूप है। चौथा यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों को बताता है। पांंचवा यह तीन आश्रमों का प्रतीक है। संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है।
नौ तार- यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। इस तरह कुल तारों की संख्‍या नौ होती है। ये नौ धागे एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो दरवाजे इन सभी को विकार रहित रखने के लिए होते हैं।
पांच गांठ- यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्ध, काम और मोक्ष का प्रतीक हैं। यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों काे भी बताती हैं।
जनेऊ की लंबाई-यज्ञोपवीत की लंबाई 96 अंगुल होती है। इसका अभिप्राय यह है कि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विधाओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए। चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर कुल 32 विधाएं होती हैं।

वैज्ञानिक लाभ

वैज्ञानिक रूप से जनेऊ धारण करने के कई लाभ हैं। धार्मिक रूप से नित्यकर्म से पहले जनेऊ को कानों पर कस कर दो बार लपेटना अनिवार्य है। दरअसल, ऐसा करने से कान के पीछे की दो नसें, जिनका संबंध पेट की आंतों से होता है। आंतों पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है। जिससे कब्ज की समस्या नहीं होती और शरीर स्वस्थ रहता है। कान के पास ही एक नस से मल-मूत्र विसर्जन के समय कुछ द्रव्य निकलता है।
जनेऊ उसके वेग को रोक देती है, जिससे कब्ज, एसिडिटी, पेट से संबंधित रोग, ब्लड प्रेशर, हार्ट डिजीज सहित अन्य संक्रमण नहीं होते। जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति नियमों में बंधा होता है। वह नित्यकर्म के बाद अपनी जनेऊ उतार नहीं सकता। जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले। इसलिए वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही जनेऊ कान से उतारता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट के रोगों सहित जीवाणुओं से बचाती है। जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हार्ट पेशेंट्स को होता है।

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