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भार -भूतेश एवं भार तीर्थ



18.भार -भूतेश एवं भार तीर्थ
[
लेखक --आचार्य शिवप्रसाद सिंह राजभर ''राजगुरु'']
[
यह लेख ''राजभर मार्तण्ड '' मासिक पत्रिका के जनवरी ,फरवरी २००६ अंक में छप चुका है /]
सर हेनरी इलियट ने हिन्दू ट्राइब्स एंड कास्ट के पृष्ठ ३६७ में लिखा है ---''आश्चर्य के साथ लिखना पड़ता है कि हिन्दू पुराणों में भर जाति का कोई जिक्र नहीं है / ेवल ब्रह्म पुराण में जयध्वज के वंशजों में भरताज शब्द का वर्णन है / सर हेनरी इलियट ने जब यह लिखा होगा तब तक संभवतः भारशिव शब्द प्रकाश में नहीं आया होगा / अथवा पुराणों में प्रयुक्त भर शब्द की गंभीरता की ओर उनका ध्यान नहीं गया होगा / [ भारशिव शब्द मध्यप्रदेश के सिवनी , छिन्दवाड़ा , बालाघाट, बैतूल ,दुर्ग ,इन्दौर महाराष्ट्र के भंडारा , अकोला , यवतमाल , वर्धा , चंद्रपुर-चांदा , अमरावती ,नागपुर आदि [ ये जिले पहले मध्यप्रदेश में थे /] में द्वितीय शताब्दी के ताम्र पत्र प्राप्त होने के बाद प्रकाश में आया /]
आज जब हम यह जान गए हैं कि भर एवं भारशिव एक ही हैं ,तब यह कहना उचित होगा कि पुराणों में इस ज़ाति का किसी किसी रूप में वर्णन विद्यमान है / बामन पुराण के भुवन कोष खंड के श्लोक देखिये ----
''
वेणाश्चैव तुषाराश्च , बहुधा वह्यातोदरा /
आत्रेयाः ,सभरद्वाज प्रस्थालाश्च दशेरकः //
लम्पकास्ताव कारामाश्चूडिकास्तंगणे सह /
अलसाश्कालि भद्राश्चकिरातांचजातयः //
अर्थात --'' वेणु , तुषार , बहुध , वाह्यातोदर , आत्रेय , सभरद्वाज , प्रस्थल , दशेरक , लम्पक , तावकाराम , चूडिक , तंगण , अलस , अलिभद्र ये सब किरात लोगों की जातियां हैं / इसमें सभरद्वाज ध्यान देने योग्य है / वे राजभर जो भारद्वाज या भरद्वाज लिखते हैं अथवा महर्षि भरद्वाज के नाम पर अपना गोत्र बताते हैं '' सभरद्वाज किरात वर्ग से है '' पर ध्यान दें / तुलसीदास के दोहे ''हरि तिय लूटत नीच भर , जय ना मीचु तेहि हेतु , अथवा भिल्लन लूटी गोपिका , वही अर्जुन वही वाण '' भी किरात वर्ग ही सिद्ध करते हैं / इसी प्रकार वे राजभर जो भार्गव लिखते हैं को पद्म पुराण के [भरत वर्ष में पर्वत और नदी खण्ड के ] श्लोक क्रमांक ४६ को पढ़ना चाहिए , जिसमें लिखा है ---'' पुड्रा; भार्गाः किरातश्च '' / पुराणों के गहन अध्ययन की आवश्यकता है /कहते हैं हत्यारा और चोर कितने भी चालाक हों कोई कोई सुराग छोड़ ही जाते हैं / इसी प्रकार पुराणकारों ने अनचाहे ही सही भार ज़ाति के विषय में पुराणों में कोई कोई संकेत दे दिए हैं /
वर्ष १९६९ -७०-७१ का अधिकांश समय मैनें जबलपुर विश्व विद्यालय [वर्तमान रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय ] के ग्रंथालय में बहुत से ग्रन्थ पढ़ने में बिताये / अमरबहादुर सिंह ''अमरेश '' का राज कलश , अंग्रेज इतिहासकारों के विभिन्न का अवलोकन मैंने उसी केन्द्रीय ग्रंथालय में किया / वहीँ पर मैंने गीता प्रेस गोरखपुर का कल्याण ''शिव पुराण विशेषांक '' पढ़ा , जिसमें '' अन्सभार सन्निवेशित शिव लिंगोद्वाहन शिव सुपरितिष्ट समुत्पादित राजवंशानाम पराक्रम अधिगतः भागीरथी अमल जलः / मूर्धाभिशिक्तानाम दशाश्वमेधः अवभृथस्नानाम भारशिवानाग '' का उल्लेख था / विभिन्न पुराणों को पढ़ते समय मैंने एक पुराण में ''भार तीर्थ '' का उल्लेख पढ़ा / भार तीर्थ रेवा नदी [नर्मदा ] के तट पर है /
केन्द्रीय शासकीय सेवा में जाने के बाद भारतीय धार्मिक , ऐतिहसिक , वांग्मय पढ़ने की गति स्वभाविक रूप से धीमी पड़ गई / किन्तु अभी एक दिन सूर्य पुराण पढ़ते समय जब मेरी दृष्टि ब्रह्मा नारद सम्वादादि कथन खंड के श्लोक
''
रूद्रकोटया, गयायां शालिग्रामेसमरेश्वरे /
पुष्करे भारभूतेशे गोकर्णे मंडलेश्वरै // ''२९ // पर गई / तब पुनः मेरा ध्यान भार जाति एवं उसके अधिष्ठाता शिव पर गया / भार तीर्थ रेवा [नर्मदा ] के तट पर बताया गया है / रेवा नदी का उद्गम अमरकंटक से हुआ है / इस नदी के तट पर भार जाति के बहुत से गाँव आज भी देखे जा सकते हैं / मंडला , जबलपुर , नरसिंहपुर ,एवं होशंगाबाद जिले के नर्मदा तट पर बसे कई गांवों को गिनाया जा सकता है --जहाँ आज भी भर या भार या भारिया , भरिया ,रजभर -राजभर जाति के लोग बहुसंख्या में निवास करते हैं / भार जाति का यह समूह नर्मदा तट पर एकत्र होकर शिव पूजन करता था ,वही स्थान भार तीर्थ के नाम से जाना जाता है /
सूर्य पुराण में वर्णित भार भूतेश तो स्पष्टतः भार ज़ाति का उल्लेख करता है / भार भूतेश का अर्थ स्पष्ट करें तो भूत का अर्थ प्राणी अथवा जाति है / भार भूतेश का पूर्ण अर्थ भार जाति का ईश्वर शिव है / भार भूतेश शब्द भार जाति एवं शिव का घनिष्ठ सम्बन्ध दर्शाता है / डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद बलिया ने अपने एक लेख में लिखा था कि शिव राजभर [भारशिव ] जाति के थे / यह अतिश्योक्ति नहीं है / यदि हम शिव को अपनी आँखों में इतिहास का चश्मा लगाकर देखें तो यह सब बडबोलापन नहीं बल्कि सत्य है / वाराणसी ,कैलाश आदि इसी भूमि में आपके सामने हैं जबकि ब्रह्मा के ब्रह्मलोक , विष्णु के बैकुंठ , इंद्र के स्वर्ग का कोई अता पता नहीं है /वामन पुराण में विष्णु एवं वीरभद्र [वीरसेन ] के युद्ध का उल्लेख है / वीरभद्र की पूजा आज भी खरवरिया वंशी रजभारों में कुल देवता के रूप में की ज़ाती है / प्रमाण के रूप में कटनी जिला के ग्राम गनयारी में निवास करने वाले श्री हेतराम राजभर के परिवार का उल्लेख किया जा सकता है / इस राजभर परिवार का बैंक [शाखा या गोत्र ] खरवार है और इस परिवार के कुलदेवता वीरभद्र हैं / मेरे एक पुत्र श्री कुमुदसिंघ का विवाह इसी परिवार में हुआ है /
वाकाटक नरेशों ने अपने ताम्रा पत्रों में भारशिव नाग वंश की प्रशंसा करते हुए दशाश्व मेध का उल्लेख किया है / उसी दशाश्व मेध का उल्लेख वामन पुराण में है / भगवान शंकर ने ब्रह्मा का एक सिर काट दिया था / ब्रह्म ह्त्या से मुक्त होने के लिए शिव ने वाराणसी में दशाश्व मेध का धर्षण किया था --'' गत्वा सुपुण्यम नगरी सुतीर्था दृष्टवाचा लोलम सा दशाश्वमेधम /'' यदि हम धैर्य पूर्वक पुराणों का अध्ययन करें तो निश्चित रूप से इस जाति के इतिहास के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण तथ्य सामने आयेंगे / शिव को भारेश्वर कहा जाता है अर्थात भार कौम का अधीश्वर / नाग वंश अथवा भार शिव नाग वंश के राजाओं की क्रम बढ़ता पुराणों में खोज कर इतिहास को नया आयाम दिया जा सकता है /
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BY- कैलाश नाथ राय भरतवंशी
FACEBOOK ADDRESS.-  kailashnathrai0023@gmail.com

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