आईये महत्वपूर्ण बिन्दु पर विचार करें कि गरीब आदमी कैसे महसूस करेगा कि वह
अमीर होने के लिये अमीर वाले रास्ते पर नही चला । इसमें कोई पैसा नही
लगेगा, बस थोड़ा सा संयम की आवश्यकता होगी-
मानव को अपने मन को प्रसन्न रखना चाहिए । मन की प्रसन्नता का मानव के शारीरिक सेहत से सीधा संबंध है। मानव मानसिक रूप से खुश रहेगा तो उनका शरीर भी स्वस्थ्य रहेगा । इसीलिये मैं आपसे अपील करता हूॅ कि आप कितना भी शारीरिक एवं आर्थिक रूप से कमजोर क्यों न हो, लेकिन मानसिक रूप से मजबूत व परिपक्व होने की कोशिश करें । इसमें बस थोड़ा सा समझना है कि कोई भी मनुष्य अमीर या गरीब के रूप में पैदा नही होता । किसी धर्म में पैदा नही होता, बल्कि प्रकृति के कारण से मानव के रूप में पैदा होता है। जीवन खुशहाल जीने की हर खूबी मानव के अन्दर छिपी है बस बाल्यावस्था में माता पिता बेहतर संस्कार दे तथा बालक समझदार होने पर शिक्षा व गुण का खान अपने भितर भरने की कोशिश करें ।
मानसिक प्रसन्नता का मानव के जीवन में बहुत महत्व है । मानसिक रूप से प्रसन्न रहने पर वह अपने जीवन के उजाला के लिये आशान्वित रहता है। आशा ही मानव को लक्ष्य के नजदीक लाने में सहायक की भूमिका अदा करता है ।
मानसिक प्रसन्नता इसलिये जरूरी है कि इसके अभाव में नकारात्मकता जगह बना लेती है। नतीजा यह होता है कि सपने टूटने पर जीवन के प्रति उत्साह उमंग खत्म होने लगता है और मानव जीते जी अपने को मृत मान लेता है। यदि आगे बढ़ने की ललक रहेगी तो परिश्रम करेगे चिन्तन करेगे तथा यात्रा करके उसे पूरा करेगे । अगर मन में आया कि भाग्य में जो होना होगा तो आप बिना परिश्रम एवं चिन्तन के रहेगे । स्थिति यह हो जायेगी कि आप का स्तर लगातार गिरता जायेगा और आप आर्थिक एवं मानसिक रूप से काफी पीछे हो जायेंगे ।
यह तो प्रमाणित है कि अच्छा करेंगे तो अच्छा होगा तथा बुरा करेगे तो बुरा होगा । अच्छा करेगे विकाश होगा बुरा करेगे विनाश होगा । जैसा व्यवहार खुद पसन्द करते है वैसा व्यवहार दूसरों के साथ भी करने की आदत लानी चाहिए ।
विवेकानन्द अपना पूरा जीवन ज्ञान के लिये समर्पित किया और जीवन जीने के उन आदर्श की खोज करके समाज के सामने रखा कि उनका एक एक वाक्य काफी कीमती बन जाता है। विवेकानन्द ने कहा है कि जो आत्मा मेरे भीतर है वही आत्मा तुम्हारे भीतर भी हैऔर हर आत्मा में परमात्मा का वास है। हर आत्मा परमात्मा का मन्दिर है। हर आदमी को अपने अन्दर ईश्वर की खोज करनी चाहिए । ऐसा करने से मनुष्य बुराईयों से अपने आप उपर उठ जाता है।
वास्तव में भाग्य या ईश्वर किसी दूसरे के माध्यम से नही मिलेगे बल्कि आपके प्रयास से आपके कर्तव्यों से ही मिलेगे । इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। मानव जीवन को बेकार होने से बचाये । करेगे तो जरूर मिलेगा । धोखे से बचे रहना का प्रयास करना चाहिए । न तो किसी जाति को अपने से बड़ा माने और न ही किसी व्यक्ति को अपने से बड़ा माने । जैसा आप सोचेगे वैसा बन जायेंगे । देश में अच्छे को तोड़कर बुरा किया गया है और बुरो को अच्छा स्थान दिया गया है। धन के आधार पर किसी का सम्मान व किसी का अपमान करते रहेगे तो न तो आप बदलेगे और न दुनिया बदल पायेंगे ।
मानव को अपने मन को प्रसन्न रखना चाहिए । मन की प्रसन्नता का मानव के शारीरिक सेहत से सीधा संबंध है। मानव मानसिक रूप से खुश रहेगा तो उनका शरीर भी स्वस्थ्य रहेगा । इसीलिये मैं आपसे अपील करता हूॅ कि आप कितना भी शारीरिक एवं आर्थिक रूप से कमजोर क्यों न हो, लेकिन मानसिक रूप से मजबूत व परिपक्व होने की कोशिश करें । इसमें बस थोड़ा सा समझना है कि कोई भी मनुष्य अमीर या गरीब के रूप में पैदा नही होता । किसी धर्म में पैदा नही होता, बल्कि प्रकृति के कारण से मानव के रूप में पैदा होता है। जीवन खुशहाल जीने की हर खूबी मानव के अन्दर छिपी है बस बाल्यावस्था में माता पिता बेहतर संस्कार दे तथा बालक समझदार होने पर शिक्षा व गुण का खान अपने भितर भरने की कोशिश करें ।
मानसिक प्रसन्नता का मानव के जीवन में बहुत महत्व है । मानसिक रूप से प्रसन्न रहने पर वह अपने जीवन के उजाला के लिये आशान्वित रहता है। आशा ही मानव को लक्ष्य के नजदीक लाने में सहायक की भूमिका अदा करता है ।
मानसिक प्रसन्नता इसलिये जरूरी है कि इसके अभाव में नकारात्मकता जगह बना लेती है। नतीजा यह होता है कि सपने टूटने पर जीवन के प्रति उत्साह उमंग खत्म होने लगता है और मानव जीते जी अपने को मृत मान लेता है। यदि आगे बढ़ने की ललक रहेगी तो परिश्रम करेगे चिन्तन करेगे तथा यात्रा करके उसे पूरा करेगे । अगर मन में आया कि भाग्य में जो होना होगा तो आप बिना परिश्रम एवं चिन्तन के रहेगे । स्थिति यह हो जायेगी कि आप का स्तर लगातार गिरता जायेगा और आप आर्थिक एवं मानसिक रूप से काफी पीछे हो जायेंगे ।
यह तो प्रमाणित है कि अच्छा करेंगे तो अच्छा होगा तथा बुरा करेगे तो बुरा होगा । अच्छा करेगे विकाश होगा बुरा करेगे विनाश होगा । जैसा व्यवहार खुद पसन्द करते है वैसा व्यवहार दूसरों के साथ भी करने की आदत लानी चाहिए ।
विवेकानन्द अपना पूरा जीवन ज्ञान के लिये समर्पित किया और जीवन जीने के उन आदर्श की खोज करके समाज के सामने रखा कि उनका एक एक वाक्य काफी कीमती बन जाता है। विवेकानन्द ने कहा है कि जो आत्मा मेरे भीतर है वही आत्मा तुम्हारे भीतर भी हैऔर हर आत्मा में परमात्मा का वास है। हर आत्मा परमात्मा का मन्दिर है। हर आदमी को अपने अन्दर ईश्वर की खोज करनी चाहिए । ऐसा करने से मनुष्य बुराईयों से अपने आप उपर उठ जाता है।
वास्तव में भाग्य या ईश्वर किसी दूसरे के माध्यम से नही मिलेगे बल्कि आपके प्रयास से आपके कर्तव्यों से ही मिलेगे । इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। मानव जीवन को बेकार होने से बचाये । करेगे तो जरूर मिलेगा । धोखे से बचे रहना का प्रयास करना चाहिए । न तो किसी जाति को अपने से बड़ा माने और न ही किसी व्यक्ति को अपने से बड़ा माने । जैसा आप सोचेगे वैसा बन जायेंगे । देश में अच्छे को तोड़कर बुरा किया गया है और बुरो को अच्छा स्थान दिया गया है। धन के आधार पर किसी का सम्मान व किसी का अपमान करते रहेगे तो न तो आप बदलेगे और न दुनिया बदल पायेंगे ।
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