राजभरों के पूर्वज भर या राजभर के नाम से शासन नही किये बल्कि शासक के रूप
में यहं भरत, भारशिव, गुप्त, बाकाटक, चंदेल, ग्रहवार, भदौरिया, बुंदेला,
परिहार, वैसवाड़ा के रूप में मतवाले हाथी के रूप में विदेशियों से लोहा लेते
रहे और एक साजिश के तहत राज सत्ता से हटाये गये और निम्न कर दिये गये । आज
यह समाज अपना इतिहास जरूर याद रखे क्योकि इतिहास समाज का दर्पण होता है ।
उसके साथ साथ आज की चुनौतियों का सामना करने के लिये हर स्तर से शैक्षणिक,
सामाजिक आर्थिक तरीके से मजबूत बने । दुष्यंत के पुत्र भरत जी थे तथा
दुश्यंत की पहली पत्नी से चोल, केरल, पाण्डय, कर्ण, आंध्र ये पाॅच पुत्र भी
हुये थे । हार्दिक पाण्ड्या जिस तरह से गुगुली को भी छक्के में बदल रहा है
। उसी तरह से इस समाज को कोई प्रेम से आगे नही बढ़ने देगा उसे गुगली को
छक्का में बदलना ही पड़ेगा और इतिहास दोहराना ही पूर्वजों के प्रति सच्ची
श्रद्धा होगी ।
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