राजभर बन्धुओं से एक अपील इसलिये कर रहा हूॅ कि भ्रम की स्थिति में जीने से
आदमी डरपोक हो जाता है। निडरता एवं एकाग्रता भंग हो जाती है अतः निम्न
विचार आप से साझा करना चाहता हूॅ -
राजभर समाज के श्री एम0बी0 राजभर जी राजभर जाति पर इतिहास की खोज करके जिस इतिहास को प्रस्तुत किये है, उसमे ंलगे समय के लिये उनका धन्यवाद करता हूॅ, किन्तु जिन वीर शासकों का उल्लेख है उसमें जैसे विम्बिसार, आजतशतु नागबंशी का उल्लख है। इसी तरह कुछ उल्लेख ऐसे है जिनकी बंशावली के मेल करने पर वे कश्यप की पत्नी दिति से उत्पन्न हिरण्याकश्यप आदि कुल से मिलता है। अर्थात श्री एम0बी0 राजभर जी ने वर्तमान राजभर समाज के इतिहास के दौरान इनकी उत्पत्ति पर फोकस नही किया है। सरसरी तौर से यदि राजभरो को नागबंशी कहा जाये तो यह तर्क हवा में तीर चलाने के समान है- क्योंकि
नागबंशी की उत्पत्ति कश्यप की पत्नी सुरसा व कद्रू से हुई है। इनमें शेषनाग, तक्षक, बाकाटक, वासुकि आदि प्रमुख नाग थे । शेषनाग धरती के दक्षिणी भाग जिसे पाताल पुरी कहा जाता है उसके राजा थे । तक्षक तक्षशिला क्षेत्र के राजा थे । इस कुल में नाई समाज के पदमानन्द से पहले क्रमशः महिप सामंत थे । इन्ही का पुत्र बिम्बिसार, अजातशत्रु, शिश्ुानाग एवं अन्तिम शासक कालाशोक जिनका रंग कौये के रंग का थे हुये थे । पदमानन्द रानी को अपने पक्ष में करके राजा कालाशोक की हत्या करके उनके आठो पुत्रों को बैलगाड़ी पर बैठाकर जंगल रवाना कर दिया था । वही बच्चो की पीढ़ी बनवासी मुसहर के रूप में विभिन्न क्षेत्रों खासकर बिहार एवं उत्तर प्रदेश में है।
कुछ राजभर विद्वान शकुन्तला पुत्र भरत से पहले आये एक भरत से राजभर जाति के आने का अपना विचार रखकर बड़े उत्साहित होते हैं । यह बंश कश्यप की पत्नी अदिति कुल में आया था । अतिदि को सूर्य आदि 7 लड़के हुये थे । सूर्य को मनु, शनि, यम, यमुना आदि हुये थे । मनु में ही इच्छवाकु आये थे । इच्छवाकु कुल में ऋषभ देव आये थे । ऋषभदेव जैन धर्म के संस्थापक एवं प्रथम प्रचारक थे । इनको 100 पुत्र हुये थे। इन पुत्रो में भरत, महाबली आदि थे । एक बार भरत एवं महाबली में मल्ल युद्ध हुआ था । महाबली भरत को पराजित कर दिये थे फिर भी अपने भाई भरत को राज पाठ देकर संयासी हो गये थे । राजा भरत अपने अन्य भाईयों को करदाता बनाकर राजा बने थे । इन लोगों को राज्यक्षेत्र तक्षशिला गान्दार आदि ही था । इसी बंश में राजा हरिश्चन्द्र, रघु, दशरथ एवं राम आदि का आगमन हुआ था । इस कुल में विशेषकर कोईरी, मल्ल, सैथवार पिछड़ी जातियाॅ एवं रघुवंशी एवं सूर्यबंशी आदि ठाकुर सवर्ण की जातियाॅ है। अगड़ा पिछड़ा कारण यह है कि जो देश बचाने के लिये मुगलो अंग्रेजो से पंगा लिये वे नीचे हो गये तथा जो विदेशियों का सहयोग किये वे आज जमीन व जाति दोनो मे ंउपर है।
अब रही बात राजभर कहा से आये । राजभर का गोत्र भारद्वाज है, राजभरों के तमाम गांव के नाम व्यासपुर है, राजभरो को मछली मार कहा जाता है, कहीं कही पाशी को भर की उप जाति कही जाती है। इसको आधार मानकर खोजने पर स्पष्ट होता है कि दुश्यंत की पत्नी शकुन्तला से भरत जी पैदा हुये थे । काफी जदोजहद के बाद दुश्यंत भरत को अपना पुत्र स्वीकार किये थे । भरत जी पाॅच वर्ष की उम्र में ही जंगल में रहते जंगली शेर, चिता, हाथी से लड़ा करते थे । शेर का गरदना मरोरकर उनकी दात गिना करते थे । भरत जी को तीन रानिया थी, जिनसे 9 पुत्र पैदा हुये थे। सभी पुत्र उन जैसा न होने के कारण भरत के ताना मारने पर रानियो ने सभी बच्चो को यम को दे दिया । भरत जी पुत्र विहीन हो गये । पुत्र प्राप्ति के लिये मरूतो को बुलाकर मरूतोत्सम यज्ञ किये । यज्ञ से भी सफलता नही मिली तो बृहस्पति के संबंध से बृहस्पति की भाभी ममता से उत्पन्न पुत्र भारद्वाज को बाल्यावस्था मे ंलाकर भरत जी को मरूतो ने दे दिया। भारद्वाज के भरत को मिलने के बाद भरत जी की पत्नी सुनन्दा जो काशी राज की पुत्री थी से भूमन्यु पैदा हुये । आगे चलकर इसी कुल में सिन्ध प्रान्त मे राज स्थापित करने वाले राजा संवरण हुये । प्रयाग की महिमा बढ़ाने वाले राजा कुरू हुये । 12 वी पीढ़ी पर शान्तनु पैदा हुये । शान्तनु की पत्नी गंगा से भीष्म पैदा हुये । शान्तनु की पत्नी सत्यवती से चित्रांगद और विचित्रवीर्य पैदा हुये । इसी सत्यवती को शादी से पहले पराशर ऋषि के संबंध से व्यास जी हुये थे । चित्रांगद गन्धवों से युद्ध मे मारे गये थे । काशी राज की पुत्री अम्बाली व अम्बालिका विचित्रवीर्य को पत्नी के रूप मे ंदी गयी थी, किन्तु विचित्र वीर्य भी क्षय रोग के कारण बिना पुत्र उत्पत्ति के स्वर्गवासी हो गये थे । सत्यवती ने भीष्म से पुत्र उत्पन्न करने का अनुरोध किया । भीष्म के मना करने पर व्यास से निवेदन किया। व्यास की कृपा से अम्बाली से ध्ृातराष्ट एवं अम्बालिका से पाण्डु पैदा हुये । अब राजभरो के गांव का नाम व्यासपुर होना और यहाॅ व्यास जी का इस वंश से जुड़ना संकेत देता है । अब पाशी की उत्पत्ति का पता करेंगे तो धृतराष्ट के 100 पुत्रों में 52वा पुत्र पाशी था । अब यहाॅ से यह पता करना जरूरी है कि जब पाशी धृतराष्ट से आये तो राजभर कहा से आये । धृतराष्ट के पुत्रों में 8 वां पुत्र बिन्द था आज एक जाति के रूप में उत्तर प्रदेश में है। दुर्योधन जन्म के समय ही सियार की आवाज निकाला था । पूर्वान्चल मे ंवियार एक जाति है जो खरवार भी सरनेम लगाते है। खरवार का अर्थ है युद्ध का कारक । दुर्योधन ही महाभारत युद्ध के कारण थे ।
अब राजभरो की खोज में आगे बढ़ते है तो अर्जुन द्रोपदी के स्वंयर में लक्ष्य रूपी मछली के आॅख को निशाना बनाकर मारे थे । यहाॅ पर मछली मार का भी कहावत सिद्ध होता है। इसमें सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु थे तथा महाभारत के बाद हस्तिनापुर से राजा परीक्षित राज पाठ संचालित किये थे। हस्तिनापुर के गंगा में विलय होने पर उस बस के निचच्छु कौशाम्बी इलाहाबाद आये थे । यहाॅ पर इतिहासकारों के पन्ने में 600 ई0पूर्व उदयन भरतवंशी राजा थे, जिसके पुत्र बोधि कुमार चुनार आये थे । इस प्रकार भ्रम को दूर करके सही बंशावली जानने से एकाग्रता आयेगी । एकाग्र व्यक्ति सही जानकारी के आधार पर निडर रहता है और अपने मुकाम को पाने में सफल रहता है।
युधिष्ठर नकुल सहदेव जाट हो गये है। भीम का कुल बोस एवं बाल्मिकी जमादार पवार के रूप में है। इन बंशो में अन्य बंशो की तरह ठाकुर भी है जो विदेशी आक्रमण के समय विदेशियों का सहयोग किये थे तथा राजा देश प्रेम व देशभक्ति के कारण राजसत्ता से अलग हो गया और आज दुर्दशा का जीवन यापन कर रहा है।
इन तथ्यो ंको प्रस्तुत करने का आशय किसी को शर्मिन्दा करना नही है, किन्तु कहने का आशय है कि सही चीज से भ्रम दूर होता है। सही दिशा से कामयाबी मिलती है। अतः इस पर ध्यान देकर चाहे जाति को हो या परजाति का हो राजभरो के बारे में सही व्याख्या करे तो बड़ी कृपा होगी
राजभर समाज के श्री एम0बी0 राजभर जी राजभर जाति पर इतिहास की खोज करके जिस इतिहास को प्रस्तुत किये है, उसमे ंलगे समय के लिये उनका धन्यवाद करता हूॅ, किन्तु जिन वीर शासकों का उल्लेख है उसमें जैसे विम्बिसार, आजतशतु नागबंशी का उल्लख है। इसी तरह कुछ उल्लेख ऐसे है जिनकी बंशावली के मेल करने पर वे कश्यप की पत्नी दिति से उत्पन्न हिरण्याकश्यप आदि कुल से मिलता है। अर्थात श्री एम0बी0 राजभर जी ने वर्तमान राजभर समाज के इतिहास के दौरान इनकी उत्पत्ति पर फोकस नही किया है। सरसरी तौर से यदि राजभरो को नागबंशी कहा जाये तो यह तर्क हवा में तीर चलाने के समान है- क्योंकि
नागबंशी की उत्पत्ति कश्यप की पत्नी सुरसा व कद्रू से हुई है। इनमें शेषनाग, तक्षक, बाकाटक, वासुकि आदि प्रमुख नाग थे । शेषनाग धरती के दक्षिणी भाग जिसे पाताल पुरी कहा जाता है उसके राजा थे । तक्षक तक्षशिला क्षेत्र के राजा थे । इस कुल में नाई समाज के पदमानन्द से पहले क्रमशः महिप सामंत थे । इन्ही का पुत्र बिम्बिसार, अजातशत्रु, शिश्ुानाग एवं अन्तिम शासक कालाशोक जिनका रंग कौये के रंग का थे हुये थे । पदमानन्द रानी को अपने पक्ष में करके राजा कालाशोक की हत्या करके उनके आठो पुत्रों को बैलगाड़ी पर बैठाकर जंगल रवाना कर दिया था । वही बच्चो की पीढ़ी बनवासी मुसहर के रूप में विभिन्न क्षेत्रों खासकर बिहार एवं उत्तर प्रदेश में है।
कुछ राजभर विद्वान शकुन्तला पुत्र भरत से पहले आये एक भरत से राजभर जाति के आने का अपना विचार रखकर बड़े उत्साहित होते हैं । यह बंश कश्यप की पत्नी अदिति कुल में आया था । अतिदि को सूर्य आदि 7 लड़के हुये थे । सूर्य को मनु, शनि, यम, यमुना आदि हुये थे । मनु में ही इच्छवाकु आये थे । इच्छवाकु कुल में ऋषभ देव आये थे । ऋषभदेव जैन धर्म के संस्थापक एवं प्रथम प्रचारक थे । इनको 100 पुत्र हुये थे। इन पुत्रो में भरत, महाबली आदि थे । एक बार भरत एवं महाबली में मल्ल युद्ध हुआ था । महाबली भरत को पराजित कर दिये थे फिर भी अपने भाई भरत को राज पाठ देकर संयासी हो गये थे । राजा भरत अपने अन्य भाईयों को करदाता बनाकर राजा बने थे । इन लोगों को राज्यक्षेत्र तक्षशिला गान्दार आदि ही था । इसी बंश में राजा हरिश्चन्द्र, रघु, दशरथ एवं राम आदि का आगमन हुआ था । इस कुल में विशेषकर कोईरी, मल्ल, सैथवार पिछड़ी जातियाॅ एवं रघुवंशी एवं सूर्यबंशी आदि ठाकुर सवर्ण की जातियाॅ है। अगड़ा पिछड़ा कारण यह है कि जो देश बचाने के लिये मुगलो अंग्रेजो से पंगा लिये वे नीचे हो गये तथा जो विदेशियों का सहयोग किये वे आज जमीन व जाति दोनो मे ंउपर है।
अब रही बात राजभर कहा से आये । राजभर का गोत्र भारद्वाज है, राजभरों के तमाम गांव के नाम व्यासपुर है, राजभरो को मछली मार कहा जाता है, कहीं कही पाशी को भर की उप जाति कही जाती है। इसको आधार मानकर खोजने पर स्पष्ट होता है कि दुश्यंत की पत्नी शकुन्तला से भरत जी पैदा हुये थे । काफी जदोजहद के बाद दुश्यंत भरत को अपना पुत्र स्वीकार किये थे । भरत जी पाॅच वर्ष की उम्र में ही जंगल में रहते जंगली शेर, चिता, हाथी से लड़ा करते थे । शेर का गरदना मरोरकर उनकी दात गिना करते थे । भरत जी को तीन रानिया थी, जिनसे 9 पुत्र पैदा हुये थे। सभी पुत्र उन जैसा न होने के कारण भरत के ताना मारने पर रानियो ने सभी बच्चो को यम को दे दिया । भरत जी पुत्र विहीन हो गये । पुत्र प्राप्ति के लिये मरूतो को बुलाकर मरूतोत्सम यज्ञ किये । यज्ञ से भी सफलता नही मिली तो बृहस्पति के संबंध से बृहस्पति की भाभी ममता से उत्पन्न पुत्र भारद्वाज को बाल्यावस्था मे ंलाकर भरत जी को मरूतो ने दे दिया। भारद्वाज के भरत को मिलने के बाद भरत जी की पत्नी सुनन्दा जो काशी राज की पुत्री थी से भूमन्यु पैदा हुये । आगे चलकर इसी कुल में सिन्ध प्रान्त मे राज स्थापित करने वाले राजा संवरण हुये । प्रयाग की महिमा बढ़ाने वाले राजा कुरू हुये । 12 वी पीढ़ी पर शान्तनु पैदा हुये । शान्तनु की पत्नी गंगा से भीष्म पैदा हुये । शान्तनु की पत्नी सत्यवती से चित्रांगद और विचित्रवीर्य पैदा हुये । इसी सत्यवती को शादी से पहले पराशर ऋषि के संबंध से व्यास जी हुये थे । चित्रांगद गन्धवों से युद्ध मे मारे गये थे । काशी राज की पुत्री अम्बाली व अम्बालिका विचित्रवीर्य को पत्नी के रूप मे ंदी गयी थी, किन्तु विचित्र वीर्य भी क्षय रोग के कारण बिना पुत्र उत्पत्ति के स्वर्गवासी हो गये थे । सत्यवती ने भीष्म से पुत्र उत्पन्न करने का अनुरोध किया । भीष्म के मना करने पर व्यास से निवेदन किया। व्यास की कृपा से अम्बाली से ध्ृातराष्ट एवं अम्बालिका से पाण्डु पैदा हुये । अब राजभरो के गांव का नाम व्यासपुर होना और यहाॅ व्यास जी का इस वंश से जुड़ना संकेत देता है । अब पाशी की उत्पत्ति का पता करेंगे तो धृतराष्ट के 100 पुत्रों में 52वा पुत्र पाशी था । अब यहाॅ से यह पता करना जरूरी है कि जब पाशी धृतराष्ट से आये तो राजभर कहा से आये । धृतराष्ट के पुत्रों में 8 वां पुत्र बिन्द था आज एक जाति के रूप में उत्तर प्रदेश में है। दुर्योधन जन्म के समय ही सियार की आवाज निकाला था । पूर्वान्चल मे ंवियार एक जाति है जो खरवार भी सरनेम लगाते है। खरवार का अर्थ है युद्ध का कारक । दुर्योधन ही महाभारत युद्ध के कारण थे ।
अब राजभरो की खोज में आगे बढ़ते है तो अर्जुन द्रोपदी के स्वंयर में लक्ष्य रूपी मछली के आॅख को निशाना बनाकर मारे थे । यहाॅ पर मछली मार का भी कहावत सिद्ध होता है। इसमें सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु थे तथा महाभारत के बाद हस्तिनापुर से राजा परीक्षित राज पाठ संचालित किये थे। हस्तिनापुर के गंगा में विलय होने पर उस बस के निचच्छु कौशाम्बी इलाहाबाद आये थे । यहाॅ पर इतिहासकारों के पन्ने में 600 ई0पूर्व उदयन भरतवंशी राजा थे, जिसके पुत्र बोधि कुमार चुनार आये थे । इस प्रकार भ्रम को दूर करके सही बंशावली जानने से एकाग्रता आयेगी । एकाग्र व्यक्ति सही जानकारी के आधार पर निडर रहता है और अपने मुकाम को पाने में सफल रहता है।
युधिष्ठर नकुल सहदेव जाट हो गये है। भीम का कुल बोस एवं बाल्मिकी जमादार पवार के रूप में है। इन बंशो में अन्य बंशो की तरह ठाकुर भी है जो विदेशी आक्रमण के समय विदेशियों का सहयोग किये थे तथा राजा देश प्रेम व देशभक्ति के कारण राजसत्ता से अलग हो गया और आज दुर्दशा का जीवन यापन कर रहा है।
इन तथ्यो ंको प्रस्तुत करने का आशय किसी को शर्मिन्दा करना नही है, किन्तु कहने का आशय है कि सही चीज से भ्रम दूर होता है। सही दिशा से कामयाबी मिलती है। अतः इस पर ध्यान देकर चाहे जाति को हो या परजाति का हो राजभरो के बारे में सही व्याख्या करे तो बड़ी कृपा होगी
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